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SHHATKARMA VIDYA

प्रथम तीर्र्थकर ऋषभदेव ने भारतीय संस्कृति को बहुत कुछ दिया है। ऋषभनाथ जी का जन्म भोग-भूमि या सर्वव्यापी सुख के युग में हुआ था । उस समय कल्पवृक्ष (इच्छित वस्तु प्रदान करने वाले पेड़ ) के कारण किसी को भी काम नहीं करना पड़ता था । समय बीतने के साथ कल्पवृक्ष की प्रभावशीलता कम होने के कारण लोगों ने मदद के लिए राजा से संपर्क किया। तब ऋषभनाथ जी  ने उन्हें छह मुख्य विद्या सिखाई थी । 

ये है : 

(1) असी (सुरक्षा के लिए तलवारबाजी), 

(2) मासी (लेखन कौशल), 

(3) कृषि (कृषि), 

(4) विद्या(ज्ञान), 

(5) वनिज्य (व्यापार और वाणिज्य) और 

(6) शिल्प (शिल्प)।

इन 6 कलाओं का ज्ञान सबसे पहले इस सृष्टि को जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने दिया था। युग के आदि में वह हुए इसलिए उन्हें आदिनाथ भी कहते है।

 

उनका यह कथन था कि यही कारण है कि - कृषि करो और ऋषि बनो। अर्थात जीविका के साथ-साथ आध्यात्मिक मूल्य भी आवश्यक हैं। 

ऋषभनाथ को जैन धर्म में खाना पकाने और मनुष्य के जीने के लिए आवश्यक सभी कौशल का आविष्कार करने और सिखाने का श्रेय दिया जाता है। ऋषभनाथ ने पुरुषों को बहत्तर विज्ञान और महिलाओं को चौंसठ विज्ञान पढ़ाया था। उन्होंने ही विवाह आदि संस्कार की विधि बताई थी ।

दूसरे शब्दों में, भगवान ऋषभदेव जी ने गृहस्थों को खुद को बनाए रखने के लिए सक्षम बनाने के लिए कला और व्यवसायों की स्थापना करके उन्हें अपना जीवन को जीने का तरीका बताया था।

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