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BHARAT AFTER BHRAT CHAKRAVARTI
भरत चक्रवर्ती वर्तमान अवसर्पिनी [Present Half Cycle] कल के पहले चक्रवर्ती थे। वे भगवान ऋषभदेव जी के सौ पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ पुत्र थे । वे इक्ष्वाकु वंश में पैदा हुए एक क्षत्रिय थे ।
भरत जी ने विश्व के 6 खंड ( भाग ) पर विजय प्राप्त की थी इसलिए उन्हें चक्रवर्ती कहा गया । भारत देश का प्राचीन नाम "अजनाभवर्ष" था जो की महाराजा नाभिराय जी के नाम पर पड़ा था। उसके बाद भरत चक्रवाती के नाम पर इस देश का नाम "भारत" अथवा "भारतवर्ष" पड़ा।
इसकी प्रमाणिकता कई ग्रंथों में मिलती है ,जैसे :
*जैनाचार्य श्री जिनसेन स्वामी जी " के द्वारा सातवीं शताब्दी में लिखें गए आदिपुराण में प्रथम चक्रवर्ती भरत का विस्तार से वर्णन किया है।
*हिन्दू ग्रन्थो में स्कन्द पुराण (अध्याय 37 ) के अनुसार "ऋषभदेव नाभिराज के पुत्र थे, ऋषभ के पुत्र भरत थे, और इनके ही नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा"। इसी तरह की बात विष्णुपुराण , वायुपुराण, लिंगपुराण, ब्रह्माण्डपुराण ,अग्निपुराण, और मार्कण्डेय पुराण में भी आयी है। भरत का उल्लेख भागवत पुराण में भी मिलता है ।
भरत ने कर्म युग में नीति राज की शुरुआत की। उन्होंने भगवान ऋषभनाथ जी द्वारा बनाई गई तीन गुना वर्ण-व्यवस्था में चौथे वर्ण - ब्राह्मणों को जोड़ा। जिसमें क्षत्रिय (योद्धा), वैश्य (व्यापारी) और शूद्र (हाथ से काम करने वाले) शामिल थे।पर यह ब्राह्मण वर्ण आज की ब्राह्मण जाति से बहुत भिन्न है । उन्होंने चार तरह के दंड निश्चित किए और राज चलाया।
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