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YOGADIPURUSH AADINATH
दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है । जैन धर्म का संस्थापक भगवान ऋषभदेव जी है, जो कि वर्तमान अवसर्पिणी काल (Present Half Cycle ) के प्रथम तीर्थंकर हैं। अन्तिम कुलकर राजा नाभिराज जी के पुत्र थे।
भगवान ऋषभदेव जी की आयु 84 लाख पूर्व (1 पूर्व=7.056 × 10^13) की थी । जो की बताता है कि भगवान ऋषभदेव इस कालचक्र (Present Half Cycle) के आदि से है ।
वेदों में , वैदिक दर्शन में, अथर्ववेद में, कल्पसूत्र व पुराणों आदी ग्रंन्थो प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है । जो बताता है कि वैदिक साहित्य में जिन यतियों और व्रात्यों का उल्लेख मिलता है वे ब्राह्मण परंपरा के न होकर श्रमण परंपरा के ही थे ।यजुर्वेद में तीन तीर्थंकरों के नामों का उल्लेख करता है - ऋषभ, अजितनाथ और अरिष्टनेमी । आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि (वर्तमान में 22वे तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ जी ) को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है ।
(Oxford )ऑक्सफोर्ड में तुलनात्मक धर्मों और दर्शनशास्त्र के Professor सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार , जो बाद में भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने । इस बात के प्रमाण हैं कि पहली शताब्दी ईसा पूर्व तक ऋषभदेव की पूजा की जा रही थी ।
राधाकृष्णन कहते हैं–" भागवत पुराण इस विचार का समर्थन करता है कि ऋषभ जैन धर्म के संस्थापक थे"।
बौद्ध साहित्य में भी ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है । यह कई तीर्थंकर की बात करता है और इसमें ऋषभनाथ के साथ शामिल हैं: पद्मप्रभा जी , चंद्रप्रभु जी , पुष्पदंत जी , विमलनाथ जी , धर्मनाथ जी और नेमिनाथ जी । धर्मोत्तरप्रदीप नाम के एक बौद्ध ग्रंथ में ऋषभनाथ को आप्टा (तीर्थंकर) के रूप में वर्णित किया गया है।
तो इन सभी से यह सिद्ध होता है की भगवान ऋषभदेव इस कालचक्र के आदि से है । और श्रमण संस्कृति ( जैन संस्कृति ) इस विश्व का सबसे प्राचीन संस्कृति है ।
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